कभी आना हमारी गली,
रहगुज़र पे तिरी नज़र रखते हैं।
बिछा देंगे कदमों तले ढ़ेरों गुल,
गुलाबों का हम शजर रखते हैं।
-शैलेन्द्र
कभी आना हमारी गली,
रहगुज़र पे तिरी नज़र रखते हैं।
बिछा देंगे कदमों तले ढ़ेरों गुल,
गुलाबों का हम शजर रखते हैं।
-शैलेन्द्र
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