मैं ये नहीं कहती हूं की लड़कियों के साथ गलत नहीं ह | हिंदी विचार

"मैं ये नहीं कहती हूं की लड़कियों के साथ गलत नहीं होता है उनके साथ भेद भाव नहीं होता है होता है बहुत गलत होता है पर मैं आज कल की पढ़ी लिखी लड़कियों से ये पूछना चाहती हूं की उन्हें ये भेद भाव ससुराल में ही क्यूं नजर आता है उन्हें सारे अधिकार पति से ही क्यूं चाहिए जबकि सच तो ये है की उनके साथ गलत उनके अपने ही घर में होता है और उनके अपने मां बाप करते हैं ये मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि 100में से दस ही पति खराब होते होंगे लेकिन सो में से नब्बे मां बाप हैं जिन्हें बेटी नहीं बेटा चाहिए पहली तो छोड़ो यहां तो लोगों को दूसरी भी बेटी नहीं चाहिए मैने कितनी ही शिक्षित औरतों को भगवान से बेटी नहीं बेटा मांगते देखा हैऔर जन्म के बाद भी कितने ही अधिकार है जो उन्हें उनके ही घर में नहीं मिलते सब तो छोड़ो शादी के कार्ड में घर के सभी लड़कों का नाम होता है पर लड़की का नहीं और ये सब बातें में तब कह रही हूं जब मुझे मेरे घर में वो सभी अधिकार मिलते हैं लेकिन फिर भी मैं वहीं लिखती हूं जो अपने आस पास देखती हूं मेरी नजर में कोई लड़की तब शिक्षित नहीं है जब वो चार पैसे कमा सके क्योंकि वो तो कोई भी कमा सकता है मेरी नजर में सही मायने में लड़कियां तब शिक्षित होंगी जब वो ऊपरी दिखावा नहीं बल्कि दिल से भगवान से बेटी मांगेगी जिस दिन इस देश में बेटियां मन्नतों से होने लगेगी उस दिन लड़कियों को बाकी अधिकार भी मिलने शुरू हो जाएंगे मेरी बात से सहमत या नहीं बताना जरूर ©Ashu Dwivedi"

 मैं ये नहीं कहती हूं की लड़कियों के साथ गलत नहीं होता है उनके साथ भेद भाव नहीं होता है होता है बहुत गलत होता है पर मैं आज कल की पढ़ी लिखी लड़कियों से ये पूछना चाहती हूं की उन्हें ये भेद भाव ससुराल में ही क्यूं नजर आता है उन्हें सारे अधिकार पति से ही क्यूं चाहिए जबकि सच तो ये है की उनके साथ गलत उनके अपने ही घर में होता है और उनके अपने मां बाप करते हैं ये मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि 100में से दस ही पति खराब होते होंगे लेकिन सो में से नब्बे मां बाप हैं जिन्हें बेटी नहीं बेटा चाहिए पहली तो छोड़ो यहां तो लोगों को दूसरी भी बेटी नहीं चाहिए मैने कितनी ही शिक्षित औरतों को भगवान से बेटी नहीं बेटा मांगते देखा हैऔर जन्म के बाद भी कितने ही अधिकार है जो उन्हें उनके ही घर में नहीं मिलते सब तो छोड़ो शादी के कार्ड में घर के सभी लड़कों का नाम होता है पर लड़की का नहीं और ये सब बातें में तब कह रही हूं जब मुझे मेरे घर में वो सभी अधिकार मिलते हैं लेकिन फिर भी मैं वहीं लिखती हूं जो अपने आस पास देखती हूं मेरी नजर में कोई लड़की तब शिक्षित नहीं है जब वो चार पैसे कमा सके क्योंकि वो तो कोई भी कमा सकता है मेरी नजर में सही मायने में लड़कियां तब शिक्षित होंगी जब वो ऊपरी दिखावा नहीं बल्कि दिल से भगवान से बेटी मांगेगी जिस दिन इस देश में बेटियां मन्नतों से होने लगेगी उस दिन लड़कियों को बाकी अधिकार भी मिलने शुरू हो जाएंगे मेरी बात से सहमत या नहीं बताना जरूर

©Ashu Dwivedi

मैं ये नहीं कहती हूं की लड़कियों के साथ गलत नहीं होता है उनके साथ भेद भाव नहीं होता है होता है बहुत गलत होता है पर मैं आज कल की पढ़ी लिखी लड़कियों से ये पूछना चाहती हूं की उन्हें ये भेद भाव ससुराल में ही क्यूं नजर आता है उन्हें सारे अधिकार पति से ही क्यूं चाहिए जबकि सच तो ये है की उनके साथ गलत उनके अपने ही घर में होता है और उनके अपने मां बाप करते हैं ये मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि 100में से दस ही पति खराब होते होंगे लेकिन सो में से नब्बे मां बाप हैं जिन्हें बेटी नहीं बेटा चाहिए पहली तो छोड़ो यहां तो लोगों को दूसरी भी बेटी नहीं चाहिए मैने कितनी ही शिक्षित औरतों को भगवान से बेटी नहीं बेटा मांगते देखा हैऔर जन्म के बाद भी कितने ही अधिकार है जो उन्हें उनके ही घर में नहीं मिलते सब तो छोड़ो शादी के कार्ड में घर के सभी लड़कों का नाम होता है पर लड़की का नहीं और ये सब बातें में तब कह रही हूं जब मुझे मेरे घर में वो सभी अधिकार मिलते हैं लेकिन फिर भी मैं वहीं लिखती हूं जो अपने आस पास देखती हूं मेरी नजर में कोई लड़की तब शिक्षित नहीं है जब वो चार पैसे कमा सके क्योंकि वो तो कोई भी कमा सकता है मेरी नजर में सही मायने में लड़कियां तब शिक्षित होंगी जब वो ऊपरी दिखावा नहीं बल्कि दिल से भगवान से बेटी मांगेगी जिस दिन इस देश में बेटियां मन्नतों से होने लगेगी उस दिन लड़कियों को बाकी अधिकार भी मिलने शुरू हो जाएंगे मेरी बात से सहमत या नहीं बताना जरूर ©Ashu Dwivedi

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