मेरे रास्ते अक्सर ठहर क्यों जाते हैं
कदम ठिठक कर क्यों रह जाते हैं
बन्द हवाओं की घुटन काफी न थी
चलती है तो सांसों के हिसाब बिगड़ जाते हैं
कोशिशों के कामयाब होने के इंतजार में
दिन और रात के फर्क खत्म हो जाते हैं
सुबह को शाम करता है शाम को रात
सफर अपना कुछ इस तरह किए जाते हैं
न मायूसी रही ,और न ही मसर्रत की आदत
दुनिया में रह कर, दुनिया से दूर हुए जाते हैं
कुछ अचानक,कुछ आहिस्ता कुछ मुस्तकिल
इसी तरह से वक्त के मौसम गुजर जाते हैं
©pratibha