मैं बैठ अकेला सोच रहा हूँ,
तन की धन को खुशिया क्या,
यहाँ तो ये सब मोह माया हैं,
मिलती है मन की खुशियां क्या,
यहाँ लोग भेद और भाव करे,
आपस मे सब टकराव करे,
क्या मिल जाती है तुम सबको,
इस सब से जग की खुशियां क्या,
पहले लोग अपना नाश करें,
फिर ऊपर वाले से आश करे,
कुछ पल की मजे की आदत से,
मिल जाती जीवन भर खुशियां क्या,
मैं बैठ अकेला सोच रहा हुँ,
तन की धन की खुशियां क्या??।
©Abhic Kumar