"जाग के काटी सारी रात।
किसे सुनाऊं अपनी बात।
दिल में अब भी बस्ती हो तुम।
सपनों मैं भी दिखती हो तुम।
याद तुम्हारी आती मुझको।
पल पल ही तड़पती मुझको।
ठीक नहीं मेरे हालात।
जाग के काटी सारी रात ।
कितना तुम्हे चाहता था मैं।
पत्नी तुम्हे मानता था मैं।
ठोकर लग बिखरे जज़्बात।
जाग के काटी सारी रात।
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