आज वो गली हमारे दीदार को तरसती हैं, जहां हमने अपना | हिंदी शायरी

"आज वो गली हमारे दीदार को तरसती हैं, जहां हमने अपना हंसता खेलता बचपन गुज़ारा हैं। ©Keshav Kamal"

 आज वो गली हमारे दीदार को तरसती हैं,
जहां हमने अपना हंसता खेलता बचपन गुज़ारा हैं।

©Keshav Kamal

आज वो गली हमारे दीदार को तरसती हैं, जहां हमने अपना हंसता खेलता बचपन गुज़ारा हैं। ©Keshav Kamal

#गली
आज वो गली हमारे दीदार को तरसती हैं,
जहां हमने अपना हंसता खेलता बचपन गुज़ारा हैं।
© Keshav Kamal....✍️
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