थोड़ी खट्टी, मीठी सी थोड़ी नमकीन है ज़िदगी
गम-ए-उल्फ़त के सितम से गमगीन है ज़िदगी
नजर-ए-गुस्ताखी से दर्द-ए-दिल मचलता है
मरीज़-ए- इश्क-ए-ज़ुर्म की शौकीन है ज़िदगी
रोहित 'हीरू' मिश्रा
©रोहित 'हीरू' मिश्रा
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