तमाम चेहरे पर बिखरा गुलाबी समां
पंखुड़ी जैसे नाज़ुक होठ
पलकों के बीच से झांकती वो दिलकस आंखे
हवा संग झूमते बिखरे ये जुल्फ
किसी डाली सा लचीला ये तेरा कातिलाना बदन
मैं कैसे मान लूं तू गुलाब नहीं
मैं कैसे मान लूं तू गुलाब नहीं
©Rudra Amritanshu
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