चौराहे पर खड़ा सूखता पेड़
मूक है हमारी तरह ही
पर उसकी शाखाएं अब भी
झांक रही है प्रगती झरोखे में
देखने को आधुनिकता के
होड़ में अंधे होते इंसानों को
देखती हैं बेजान शाखों को
ले जाते लोगों को
अट्टाहास कर सोचतीं हैं
अपनी चिता का सामान
खुद ही ढ़ो लो
वरना पर्वत के मलबों में
गुम हो जाओगे।
©alka mishra
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