आज फुर्सत मिली तो ख्याल आया,
जो दिल में था वो तो ना पाया।
ज़िन्दगी यूँ ही हो गई बसर,
जिसे चाहा उससे कहना ना आया।
टूट ही गया वो हकीकत में,
ख्वाबों में था जो आशियां बनाया।
चलते रहे फ़र्ज़ औऱ कर्ज़ के दरमियां,
क्यों खुलकर हमें जीना ना आया।
करते रहे हम औरो की कही,
अपनी बात को रखना ना आया।
अब किससे कहें हम दास्तां अपनी
अपने हालात पर बहुत रोना आया।
©Rupa Ki Diary
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