कल ही तो वो मुस्कुरा रहे थे यहाँ,
न जाने वो आज चले गए हैं कहाँ;
ये कैसी विपदा आ पड़ी है आज़,
जो आँसू बहा रहा है सारा जहाँ!
ऐ मालिक और कितना रुलायेगा,
मौत का खेल कितना दिखायेगा;
लग रहा है समय से पहले ही तुम,
सबको अपने ही पास बुलायेगा!
यों क्रमशः बुलाने से अच्छा होता,
एक बार सबको बुला लिया होता;
न रहता इस धरा पर कोई ज़िंदा,
ना ही कोई किसी के लिए रोता!
✍️~~अमर बिहारी_
समस्तीपुर ( बिहार )
©Kavi Amar Bihari
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