बहकने के साजो-सामान बहुत है,जमाने में। मय की दहलीज़ | हिंदी Shayari

"बहकने के साजो-सामान बहुत है,जमाने में। मय की दहलीज़ पर आकर समलता कौन है? तारीफ ग़र गुनाह-सा ख़लल करने लग जाए। रसूखदारो की दावतों पर निकलता कौन है? मुकेश गोगडे रसूखदार-प्रतिष्ठित लोग, खलल-रुकावट ©kavi mukesh gogdey"

 बहकने के साजो-सामान बहुत है,जमाने में।
मय की दहलीज़ पर आकर समलता कौन है?
तारीफ ग़र गुनाह-सा ख़लल करने लग जाए।
रसूखदारो की दावतों पर निकलता कौन है?
                      मुकेश गोगडे

रसूखदार-प्रतिष्ठित लोग, खलल-रुकावट

©kavi mukesh gogdey

बहकने के साजो-सामान बहुत है,जमाने में। मय की दहलीज़ पर आकर समलता कौन है? तारीफ ग़र गुनाह-सा ख़लल करने लग जाए। रसूखदारो की दावतों पर निकलता कौन है? मुकेश गोगडे रसूखदार-प्रतिष्ठित लोग, खलल-रुकावट ©kavi mukesh gogdey

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