हर रात ख़्वाबों में मुझे, तेरा शहर नज़र आता है,
मेरे हाल से अब तू भी, बेखबर नज़र आता है ।
हर शख़्स नज़र आता है, उन पुरानी राहों पर,
मुझे तो बस वो वीरान दरख़्त नज़र आता है ।
हर बात जो कह देता था, बेबाक हर किसी से,
आईने में मुझे वो अब, खामोश नज़र आता है ।
अब कई शौक हैं मेरे, एक शौक भुलाने के लिए,
वो एक शौक मुझे अब, गुमनाम नज़र आता है ।
वो खामोश राज़ तेरी आँखों का, हम राज़ रखेंगे,
हर हर्फ पर आज भी, तेरा चेहरा नज़र आता है ।
©Rajat Pratap Singh
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