बचपन मे इस त्यौहार के लिए मलंग रहते थे
सुबह से रात तक हाथों मे मंजे और पतंग रहते थे
याद है मुझे तंग के छेद करने कर लिए तीली और बीड़ी हुआ करते थे
हाँ ज़्यादा पतंगे लूटने के लिए हम सीरी हुआ करते थे
ऐसा नहीं है की हम पर कोई सजा था
पर लूटी पतंग उड़ाने का एक अलग ही मज़ा था
13 जनवरी को जल्दी सो जाओ, कहकर, घर वाले बहुत डांटते थे
हम डीठ रातो मे उठ उठ कर पतंगों मे तांग डालते थे
खुद को एक अलग ही घमंड मे आसमा का राजा मानते थे
जब दूर सबसे अलग अपनी पतंग तानते थे
वो 13 जनवरी की रात, रात भर नींद ना आना
सकरात की सुबह 5 बजे जग जाना, चरखी पतंग लेकर छत पर चढ़ जाना
अँधेरे मे पहली पतंग पीली उड़ाना, वो काटा ज़ोर से चिल्लाना
चलो उन लम्हो को फिर से जीते है
मस्ती के लम्हो का शरबत पीते है
सकरात आई है उम्र मे खुद को कच्चा मानते है
आज कोई ज़िम्मेदारी नहीं आज हम खुद को बच्चा मानते है
©Anchor RJ Gaurav