green-leaves *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"* वो ग | हिंदी Po

"green-leaves *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"* वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर, छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर। पहले आये कई, आएंगे और भी, जाने कितनों का घर हो गया ये शहर। फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए, छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर। ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया, ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर। कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र', भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर। - शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR"

 green-leaves *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"*

वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर,
छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर।

पहले आये कई, आएंगे और भी,
जाने कितनों का घर हो गया ये शहर।

फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए,
छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर।

ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया,
ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर।

कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र',
 भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर।
          - शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR

green-leaves *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"* वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर, छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर। पहले आये कई, आएंगे और भी, जाने कितनों का घर हो गया ये शहर। फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए, छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर। ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया, ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर। कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र', भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर। - शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR

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