green-leaves *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"*
वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर,
छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर।
पहले आये कई, आएंगे और भी,
जाने कितनों का घर हो गया ये शहर।
फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए,
छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर।
ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया,
ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर।
कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र',
भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर।
- शैलेन्द्र राजपूत
©HINDI SAHITYA SAGAR
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