White मज़ाक था या सच जाने क्या सोचकर आया था
मेरा अज़ीज़ मुझको गिफ्ट में आईना लाया था
वो आसूं सिर्फ आसूं नहीं बाग़ी भी हो सकते थे
पर क्या शख्स रहा था वो जो फिर भी निभाया था
जिससे ज्यादातर नाराज़ ही रहता रहा ये दिल
उसको ही अपने बुरे दिनों में अपने साथ पाया था
वो मेरी जान से जिक्र की है कि वो मेरी होती
जो मुझे उन दिनों बर्बाद ओ बेकार बताया था
©dharmendra kumar yadav
ग़ज़ल