देह पर मेरे उसकी नजर गढ़ी
अस्मिता पर मेरे वार किया
ताउम्र के लिए मुझे बेजार किया
घाव जिस्म के फिर भी भर जाए
रूह पर मिले जख्म ताउम्र न मिट पाए
चंद पल को हवस के लिए मुझे बर्बाद कर
क्या खुशी तुमने पाई
दर्द तड़प पीड़ मेरी क्यों न तुम्हे नजर आई
किस खता की सजा मैने पाई
क्यों देह पर मेरी नज़रे तुमने गढ़ाई
अपनी हवस के लिए
मेरी दुनिया मेरी खुशी लुटाई
किस खता की सजा मैने पाई
©kavya soni
#हवस