मैं सुमित शर्मा सांसे चलती है मगर बदन में हरकत नही
"मैं सुमित शर्मा
सांसे चलती है मगर बदन में हरकत नहीं होती
यह खुद को मारकर जीना कैसा है
और यह शराब मुझे मीठी लगती है
यह बताओ जहर पीना कैसा है
इस सर्द रात में बो ना जाने किसका जिस्म ओढ़ रही होगी
इस सर्दी के मौसम में मुझे पसीना कैसा है"
मैं सुमित शर्मा
सांसे चलती है मगर बदन में हरकत नहीं होती
यह खुद को मारकर जीना कैसा है
और यह शराब मुझे मीठी लगती है
यह बताओ जहर पीना कैसा है
इस सर्द रात में बो ना जाने किसका जिस्म ओढ़ रही होगी
इस सर्दी के मौसम में मुझे पसीना कैसा है