मैं कहां ढूंढूंगा, खुदको, इन उलझे रास्तों में? जहा

"मैं कहां ढूंढूंगा, खुदको, इन उलझे रास्तों में? जहां खोया हूं, वो रास्ता, अंदर ही कहीं है। अभी अभी, यहीं था मैं, खिलखिलाता,ठहाके लगाता, आंखो में ख्वाबों की, तस्वीर बनाता। पाना है,या खोना है, अब सीखा है सबकुछ मैंने, इन चिखो के दर्मिया, एक खामोशी को महसूस किया है मैंने। ठहरे हुए,खुद में, खुदको भागते देखा, हाथो में,सुकून लिए, बेचैनी को निहारते देखा। अब कहां ढूंढूंगा, खुदको, इन उलझे रास्तों में? जहां खोया हूं, वो रास्ता अंदर ही कहीं है। :- मख़दूम आजम"

 मैं कहां ढूंढूंगा,
खुदको,
इन उलझे रास्तों में?
जहां खोया हूं,
वो रास्ता,
अंदर ही कहीं है।

अभी अभी,
यहीं था मैं,
खिलखिलाता,ठहाके लगाता,
आंखो में ख्वाबों की,
तस्वीर बनाता।

पाना है,या खोना है,
अब सीखा है सबकुछ मैंने,
इन चिखो के दर्मिया,
एक खामोशी को महसूस किया है मैंने।

ठहरे हुए,खुद में,
खुदको भागते देखा,
हाथो में,सुकून लिए,
बेचैनी को निहारते देखा।

अब कहां ढूंढूंगा,
खुदको,
इन उलझे रास्तों में?
जहां खोया हूं,
वो रास्ता अंदर ही कहीं है।

:- मख़दूम आजम

मैं कहां ढूंढूंगा, खुदको, इन उलझे रास्तों में? जहां खोया हूं, वो रास्ता, अंदर ही कहीं है। अभी अभी, यहीं था मैं, खिलखिलाता,ठहाके लगाता, आंखो में ख्वाबों की, तस्वीर बनाता। पाना है,या खोना है, अब सीखा है सबकुछ मैंने, इन चिखो के दर्मिया, एक खामोशी को महसूस किया है मैंने। ठहरे हुए,खुद में, खुदको भागते देखा, हाथो में,सुकून लिए, बेचैनी को निहारते देखा। अब कहां ढूंढूंगा, खुदको, इन उलझे रास्तों में? जहां खोया हूं, वो रास्ता अंदर ही कहीं है। :- मख़दूम आजम

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