वो गुजरा हुआ जमाना मुझे बहुत याद आता है... वो रह र | हिंदी कविता

"वो गुजरा हुआ जमाना मुझे बहुत याद आता है... वो रह रह कर तेरा खिलखिलाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो कॉलेज के नॉलेज पार्क, और पार्क में फव्वारें फव्वारें में एक साथ पैर डाल कर घंटो बैठना थोड़ा लड़ना थोड़ा रूठना और मनाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो अचानक मिलने की ज़िद, क्लास बंक करने की क़सिद और बिन कुछ बोले कॉलेज की आखिरी सीढ़ी पर जा कर बैठ जाने की उम्मीद मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो कॉलेज की पिया मिलन चौक, और उस चौक के सर्किल पर बैठ के इतराना थोड़ा हँसना थोड़ा गुनगुनाना और फिर चिल्लाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो शहर की तंग गलियां,डूबते सूरज की लालियाँ मुस्कुराते हुए तुम,साथ देखे हुए ख़्वाब और सजाये सपनों की अनगिनत डालियाँ मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो गुजरा हुआ जमाना मुझे बहुत याद आता है... वो रह रह कर तेरा खिलखिलाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। ©Rahul Ranjan"

 वो गुजरा हुआ जमाना मुझे बहुत याद आता है...
वो रह रह कर तेरा खिलखिलाना मुझे आज भी बहुत याद आता है।

 वो कॉलेज के नॉलेज पार्क, और पार्क में फव्वारें
फव्वारें में एक साथ पैर डाल कर घंटो बैठना
थोड़ा लड़ना थोड़ा रूठना और मनाना मुझे आज भी बहुत याद आता है।

वो अचानक मिलने की ज़िद, क्लास बंक करने की क़सिद
और बिन कुछ बोले कॉलेज की आखिरी सीढ़ी पर जा कर बैठ जाने की उम्मीद मुझे आज भी बहुत याद आता है।

वो कॉलेज की पिया मिलन चौक, और उस चौक के सर्किल पर बैठ के इतराना
थोड़ा हँसना थोड़ा गुनगुनाना और फिर चिल्लाना मुझे आज भी बहुत याद आता है।

वो शहर की तंग गलियां,डूबते सूरज की लालियाँ
मुस्कुराते हुए तुम,साथ देखे हुए ख़्वाब और सजाये सपनों की अनगिनत डालियाँ मुझे आज भी बहुत याद आता है।

वो गुजरा हुआ जमाना मुझे बहुत याद आता है...
वो रह रह कर तेरा खिलखिलाना मुझे आज भी बहुत याद आता है।

©Rahul Ranjan

वो गुजरा हुआ जमाना मुझे बहुत याद आता है... वो रह रह कर तेरा खिलखिलाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो कॉलेज के नॉलेज पार्क, और पार्क में फव्वारें फव्वारें में एक साथ पैर डाल कर घंटो बैठना थोड़ा लड़ना थोड़ा रूठना और मनाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो अचानक मिलने की ज़िद, क्लास बंक करने की क़सिद और बिन कुछ बोले कॉलेज की आखिरी सीढ़ी पर जा कर बैठ जाने की उम्मीद मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो कॉलेज की पिया मिलन चौक, और उस चौक के सर्किल पर बैठ के इतराना थोड़ा हँसना थोड़ा गुनगुनाना और फिर चिल्लाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो शहर की तंग गलियां,डूबते सूरज की लालियाँ मुस्कुराते हुए तुम,साथ देखे हुए ख़्वाब और सजाये सपनों की अनगिनत डालियाँ मुझे आज भी बहुत याद आता है। वो गुजरा हुआ जमाना मुझे बहुत याद आता है... वो रह रह कर तेरा खिलखिलाना मुझे आज भी बहुत याद आता है। ©Rahul Ranjan

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