गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है, बेब | हिंदी शायरी

"गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है, बेबाक मोहब्बत को भी, सपना होते हुए देखा है ! लोग कहते है कि मोहब्बत सच्ची नहीं होती, उनको भी मक्कारी का सौदा करते हुए देखा है ! कंधो पे सर रख कर मेरे, किसी और के लिए रोते है, गमों का बोझ किसी और का, मेरे कंधों पर ढोते है ! अजीव दास्तां है दुनिया कि भी,चाहने बालों को खोते है, मेरे मुंह पर हंसने वाले,किसी और के लिए रोते है ! "विवेक" गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है, वो मेरे थे बस इसी बहम में,उनको भी खोते देखा है ! ©Thakur Vivek Krishna"

 गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है,
बेबाक मोहब्बत को भी, सपना होते हुए देखा है !

लोग कहते है कि मोहब्बत सच्ची नहीं होती,
उनको भी मक्कारी का सौदा करते हुए देखा है !

कंधो पे सर रख कर मेरे, किसी और के लिए रोते है,
गमों का बोझ किसी और का, मेरे कंधों पर ढोते है !

अजीव दास्तां है दुनिया कि भी,चाहने बालों को खोते है, 
मेरे मुंह पर हंसने वाले,किसी और के लिए रोते है !

 "विवेक" गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है,
वो मेरे थे बस इसी बहम में,उनको भी खोते देखा है !

©Thakur Vivek Krishna

गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है, बेबाक मोहब्बत को भी, सपना होते हुए देखा है ! लोग कहते है कि मोहब्बत सच्ची नहीं होती, उनको भी मक्कारी का सौदा करते हुए देखा है ! कंधो पे सर रख कर मेरे, किसी और के लिए रोते है, गमों का बोझ किसी और का, मेरे कंधों पर ढोते है ! अजीव दास्तां है दुनिया कि भी,चाहने बालों को खोते है, मेरे मुंह पर हंसने वाले,किसी और के लिए रोते है ! "विवेक" गैरों के अपनों को मैंने,अपना होते हुए देखा है, वो मेरे थे बस इसी बहम में,उनको भी खोते देखा है ! ©Thakur Vivek Krishna

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