बिगड़ी बाते कुछ बाते बिगड़ी हैं एक बात पे वो अकड़ी हैं पैरों पर ना जाने मारी कुर्हाड़ी या लकड़ी हैं मुसीबतों की बात मैने जड़से पकड़ी हैं ©काव्यात्मक अंकुर.
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