दोहा :-
तीखे-तीखे नैन से , क्यों करती हो वार ।
हम तो तेरे हो चुके , पहनाओ अब हार ।।
इस जीवन में आप पर , बैठा ये दिल हार ।
लगकर सीने से कहो , हुआ हमें भी प्यार ।।
करता हूँ मैं आज कल , छोटा सा व्यापार ।
लेना देना दिल यही , अपना कारोबार ।।
कुछ तो मेरी भी सुनो , अब मेरे दिलदार ।
भर दो झोली आज यह , पड़ा तुम्हारे द्वार ।।
कब तक बैठा मैं रहूँ , बोलो अब सरकार ।
पहनाओ मुझको गले , इन बाँहों का हार ।।
महकी महकी यह फिजा , महकी आज बहार ।
अब तो तेरे नाम से , यह जीवन उजियार ।।
अब तो इतनी हैं सनम , मेरी भी दरकार ।
तेरी बाहों का प्रखर , पड़े गले में हार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
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