उठने लगे खयालात आसमां में चांद की तरह सँवर जाऊँ l खामोशी की चादर को फ़ेंक प्रेम के जर्रे को समझ पाऊँ l इश्क को कैसे जाहिर करुँ उसकी महक से पहचान लेना तेरी परछा.
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