पिंजरे से तो आजाद हो गई , पर पिंजरा दिल से कैसे निकालूं , खुलके जीने की ये एक ख्वाहिश, आखिर कभी भी होगी पूरी,, दिन और रात तो सबकी है ना, फिर आज तक क्यों नहीं.
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