ना जाने ये राहे, किस मंजिल तक ले जायेगी, मंजिल का पता नही, पर राहों में ही मैं खो गई। इन राहों में सुख- दुःख, आसूं- सुकून , अपने- परायों में मैं ऐसी उलझी गई की.
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