[" मानवता में असुर"]
" फेक रहे हैं पत्थर असुर बनकर
बुला रहे हैं मौत को स्वयं यमदूत बनकर"
" शर्म नहीं आई तुम्हें हैवानियत की सीमा पार कर
लान्ग कराए थे स्वयं भगवान अपने कर्तव्य भूमि पार कर"
" बंद है आज हर धर्म की चार दिवारी
खुले हैं केवल आज भगवान के दूतों की कर्तव्य की चार दीवारी"
" हैवान भी पखार थे हैं भगवान के चरण
स्वयं भगवान के दूत आए थे लेकर अपने चरण"
" फेके हैं पत्थर , ठुकरा दिया तुमने जीवन को
हो नहीं तुम उस लायक अब बचा जाए तुम्हारे जीवन को"
" बिक गई आज मानवता पत्थरों के मौल
नहीं रहा तुम्हें अपने जीवन का भी मौल"
" भगवान के दूत आए थे जीवन लेकर
तुम भागे अपने हाथों मौत का बुझा हुआ दीपक लेकर"
" आया है तुम्हारे कर्मों का साया लौट कर
पर नहीं तुम्हें चाहिए ही नहीं , आए तुम्हारा जीवन लौट कर"
" बचाने आए थे वो मानव प्रजाति को
बन कर दिखा दिया तुमने असुर उनको"
" हो ही नहीं मानव , कलंक हो मानवता के नाम पर
इन्हीं असुरी कर्मों की वजह से बरस रहा कहर पृथ्वी पर"
" क्या हासिल कर लिया तुमने उछाल दिया जीवन को सिक्कों की तरह
जैसे उछाल था अपने हाथों एक एक पत्थर को जिस तरह"
" मौत निश्चित नहीं थी दे मारी लात तुमने अपने ही जीवन को
अब मौत निश्चित है लगा लो एड़ी से चोटी तक का जोड़ बचाकर दिखाओ अपने जीवन को"
[" सहायता नहीं ली तुमने निस्वार्थ डॉक्टरों की करके दिखाना अब तुम स्वयं की सहायता , खड़े हैं वो आज भी निस्वार्थ बनकर ही"]
By-Lata Sahu
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