**महानदी की महिमा**
बहती धारा सजीव महान,
सीने में जिसके है गर्व की शान।
कल-कल करती निरंतर बहती,
जीवन की धारा सदा यहाँ रहती।
पर्वतों से उतरी ममता की धारा,
हरियाली फैला, खुशियों का सहारा।
कभी शांत, कभी उफनती है,
मानवता को सिखा संयम यह देती है।
कृषकों की आस, धरती की प्यास,
हर बूँद में समाई जीवन की आश।
मिट्टी को सोना बनाती ये धारा,
सपनों की लहरों पर नित करती इशारा।
महानदी, तुम हो सृष्टि का वरदान,
तुमसे ही जग का नव निर्माण।
तुम्हारी गोद में फले फूलें खेत,
तुमसे ही जीवन हो सदा अद्वितीय।
©Himanshu Sahu
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