White ग़ालिब गैर नहीं है ,अपनों से अपने हैं,
बंगाली की बोली ही आज हमारी बोली है ।
नवीन आंखों में जो नवीन सपने हैं
वे ग़ालिब के सपने हैं ।
गालिब ने खोली गांठ जटिल जीवन की,
बात और वह बोली नपीतुली थी, हल्के पान का नाम नहीं था।
सुख की आंखों ने दुख देखा और टिटौली की,
यों जी भर बहलाया।
बेशक दाम नहीं था उनकी अंटी में, दुनिया से काम नहीं था
लेकिन उस को सांस सांस पर तौल रहे थे ।
अपना कहने को क्या था, धन-धान नहीं था
सत्य बोलता था जब मुंह खोल रहे थे ।
ग़ालिब होकर रहे जीत कर दुनिया छोड़ी
कवि थे, अक्षर में अक्षर की महिमा जोड़ी।
-त्रिलोचन
©gudiya
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