स्त्री नख से शिख तक सुंदर होती है,
पुरुष नहीं, पुरुष का सौंदर्य उसके चेहरे पर तब उभरता है
जब वह अपने साहस के बल पर
विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल कर लेता है
ईश्वर ने गढ़ते समय
पुरुष और स्त्री की लंबाई में थोड़ा सा अंतर कर दिया है
पुरुष लंबे हो गए, स्त्री छोटी गयी
इस अंतर को करने के दो ही तरीके हो सकते है
या तो स्त्री पांव उचका कर बड़ी हो जाय,
या पुरुष माथा झुका कर छोटा हो जाय,
जब राजा जनक के दरबार में
स्वयंवर के समय माता भगवान राम को
वरमाला पहनाने आयी, तो प्रभु उनसे ऊँचे निकले,
माता को उचकना पड़ता,
पर प्रभु ने स्वयं ही सिर झुका लिया,
दोनो बराबर हो गए, हम वहीं से तो सीखते है
सब कुछ स्त्री पुरुष सम्बन्धों में यदि प्रेम है,
समर्पण है, सम्मान है, तो बड़े से बड़े अंतर को भी
थोड़ा सा उचक कर या सर झुका कर दूर किया जा सकता है,
गाँव के बुजुर्ग कहते है
पुरुष की प्रतिष्ठा उसकी स्त्री तय करती है
और स्त्री का सौंदर्य उसका पुरुष
दोनों के बीच समर्पण हो तभी उनका संसार सुन्दर होता है..!
©Matangi Upadhyay( चिंका )
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