White _____बारह_बजे_की_बेचैनी_____
हो चुके हैं बारह बजकर बाईस मिनट
फिर भी नहीं आयी नींद की आहट
कि आखिर कब उसे न्याय मिलेगा-
यही सोच कर दिल में है अकुलाहट।
निराकार होकर भी आनंद जल रहा,
हल्का हौसला देती है जिसकी लपट
म्हारी महफ़िल लूटेरों से भर गयी है
तुम आओ, कष्ट मिटाओ मेरे नटखट!
कविता जो दिया है,मुझे मालूम है यह
तुम इक और उपहार दो, वह संसार दो,
जिसमें लालच न हो, न ही कोई कपट।
मेरे माधव मुझको तुम जल्दी जिता दो
तुड़वा-तुड़वाकर प्रत्येक घोटाले का घट।
यही सोचते-सोचते अब बज चुके हैं एक
शुरू हुई बारह-बाईस पे कविता की टेक।।
...✍️विकास साहनी
©Vikas Sahni
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