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White ये समाज और उनके कुछ लोगों के बड़े बड़े चोंचले, इन्हें खुद चैन की नींद नसीब नहीं, ये लोगों को संभालने को बोलें उसके घोंसले। जिंदगी हमारी खुद के फैसले की मोहताज है, अब इसे खुद के दम पे जीना है या उनके, ये तू खुद अंदर ही अंदर सोच ले. ©Priñçe Ràjput

#मोटिवेशनल #Lion  White ये समाज और उनके कुछ लोगों के बड़े बड़े चोंचले,
इन्हें खुद चैन की नींद नसीब नहीं,
ये लोगों को संभालने को बोलें उसके घोंसले।
जिंदगी हमारी खुद के फैसले की मोहताज है,
अब इसे खुद के दम पे जीना है या उनके,
ये तू खुद  अंदर ही अंदर सोच ले.

©Priñçe Ràjput

#Lion @Gautam Kumar @Anudeep @Author Shivam kumar Mishra Praveen Storyteller Reeda

18 Love

White Meri jaan itni achi hai ki meri ek choti si nadani ko vi mera pyaar samjhti hai wo is kadaar mujhe samjhti hai ©Mùśâfîř Tèŕá

#International_Chess_Day #शायरी  White Meri jaan itni achi hai ki meri ek choti si nadani ko vi mera pyaar samjhti hai wo is kadaar mujhe samjhti hai

©Mùśâfîř Tèŕá

#International_Chess_Day @mirrorsouls_sqsh दुर्लभ "दर्शन" @Author Shivam kumar Mishra Sudha Tripathi @Gautam Kumar

15 Love

#शायरी  White मेरी बंदगी पे इस कदर पहरा क्यूं है? सब जानकर भी रब्ब मेरा बहरा क्यूं है ? बड़े अजीब हैं हालात जाने इस शहर के क्यूं , फिजा में भी यहां का राज गहरा क्यूं है ? मेरी बंदगी पे ........ । निकल जाते कभी के हम वफा ने रोक रखा है , मेरा रुखसार इस उजड़े चमन में ठहरा क्यूं है ? मेरी बंदगी पे इस कदर ....?

©Ravi Ranjan Kumar Kausik

White बांट दो सबको, संतुलन बना रहेगा पर संतुलन तो बराबरी हुई ना? जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो , यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी? प्रजा कौन है,और राजा कौन? फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा सबको ज्ञात होनी चाहिए कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं, व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज किसने निर्मित कि ये खाई, ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच? स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार, सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे? जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग कब तक कहलाएंगे माओवादी? देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी? कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी? दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज.....के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते, जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद, तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी उसकी मृत्यु का कारण बनती है, तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में तब यह विचार और चुभने लगता है,जब देश की प्रगति के नाम पर विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से यह सोच तब हमें तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को आज भी प्राथमिकता नहीं मिली क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं? क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है? या है उसे पर इनका भी हक यह सबरी केवट का देश है तो गाली से इनका स्वागत क्यों? ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों? जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो ©Priya Kumari Niharika

#sad_shayari  White  बांट दो सबको,  संतुलन बना रहेगा
 पर संतुलन तो बराबरी हुई ना?
 जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो ,
 यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी?
 प्रजा कौन है,और राजा कौन?
 फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा
 सबको ज्ञात होनी चाहिए
 कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, 
और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं,
 व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज
 किसने निर्मित कि ये खाई,  ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच?
 स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार,
 सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार 
 दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई
  मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े
 छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे 
 अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के
 और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे?
 जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग 
 कब तक कहलाएंगे माओवादी?
 देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी?
 कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी?
 दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां 
 व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से
 आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई 
 आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज.....के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते,
 जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है 
आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद,
 तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी
उसकी मृत्यु का कारण बनती है,
 तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर 
 डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना 
 और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर
तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में 
तब यह विचार और चुभने लगता है,जब देश की प्रगति के नाम पर 
 विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से
 यह सोच तब हमें तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी 
 पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर 
मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को 
 आज भी प्राथमिकता नहीं मिली 
 क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं?
 क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है?
 या है उसे पर इनका भी हक 
 यह सबरी केवट का देश है तो गाली से इनका स्वागत क्यों?
 ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों?
 जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये 
 अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं 
 याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं 
 अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे 
 तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो

©Priya Kumari Niharika
#SAD  پیار سے سمجھایا کریں ، بات کیا کریں ، اپنی بات رکھا کریں ۔
جب آپشن ہو نرمی سے ، حکمت سے ، دھیمے لہجے میں بات کرنے کی تو ترش و تیز لب و لہجہ یا اگلے کے گلے ہی پڑ جانا صرف بیزار کرے گا بلکہ سامنے والے پریشان حال کو اور اداس کرے گا ۔ 
اکثر مشاہدہ رہا کہ بات اتنی قیمتی ، گہری اور کارآمد ہوتی ہے لیکن کہنے کا انداز ، وقت اور الفاظ ساری قیمت گرا دیتے ہیں ۔ ایسی تیز ٹون رکھی جاتی ہے یا ایسے ہلکے الفاظ کہ ساری طبیعت ہی مکدر ہوجائے ۔ 
اپنے جملوں کو مزین کرنا سیکھیے ۔۔۔ اچھے الفاظ اور خوبصورت و معتدل لہجے میں کی گئی بات دل تک اثر رکھتی ہے ۔

©व@हिD️
#love_shayari  White अंधेरों में कुछ बाते छुपी हुई है 
लगता है वो इश्क़ का पैगाम है...

©Kuldeep singh rj09

#love_shayari @Author Shivam kumar Mishra बाबा ब्राऊनबियर्ड @rasmi जादूगर @Vijay Kumar

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White ये समाज और उनके कुछ लोगों के बड़े बड़े चोंचले, इन्हें खुद चैन की नींद नसीब नहीं, ये लोगों को संभालने को बोलें उसके घोंसले। जिंदगी हमारी खुद के फैसले की मोहताज है, अब इसे खुद के दम पे जीना है या उनके, ये तू खुद अंदर ही अंदर सोच ले. ©Priñçe Ràjput

#मोटिवेशनल #Lion  White ये समाज और उनके कुछ लोगों के बड़े बड़े चोंचले,
इन्हें खुद चैन की नींद नसीब नहीं,
ये लोगों को संभालने को बोलें उसके घोंसले।
जिंदगी हमारी खुद के फैसले की मोहताज है,
अब इसे खुद के दम पे जीना है या उनके,
ये तू खुद  अंदर ही अंदर सोच ले.

©Priñçe Ràjput

#Lion @Gautam Kumar @Anudeep @Author Shivam kumar Mishra Praveen Storyteller Reeda

18 Love

White Meri jaan itni achi hai ki meri ek choti si nadani ko vi mera pyaar samjhti hai wo is kadaar mujhe samjhti hai ©Mùśâfîř Tèŕá

#International_Chess_Day #शायरी  White Meri jaan itni achi hai ki meri ek choti si nadani ko vi mera pyaar samjhti hai wo is kadaar mujhe samjhti hai

©Mùśâfîř Tèŕá

#International_Chess_Day @mirrorsouls_sqsh दुर्लभ "दर्शन" @Author Shivam kumar Mishra Sudha Tripathi @Gautam Kumar

15 Love

#शायरी  White मेरी बंदगी पे इस कदर पहरा क्यूं है? सब जानकर भी रब्ब मेरा बहरा क्यूं है ? बड़े अजीब हैं हालात जाने इस शहर के क्यूं , फिजा में भी यहां का राज गहरा क्यूं है ? मेरी बंदगी पे ........ । निकल जाते कभी के हम वफा ने रोक रखा है , मेरा रुखसार इस उजड़े चमन में ठहरा क्यूं है ? मेरी बंदगी पे इस कदर ....?

©Ravi Ranjan Kumar Kausik

White बांट दो सबको, संतुलन बना रहेगा पर संतुलन तो बराबरी हुई ना? जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो , यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी? प्रजा कौन है,और राजा कौन? फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा सबको ज्ञात होनी चाहिए कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं, व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज किसने निर्मित कि ये खाई, ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच? स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार, सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे? जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग कब तक कहलाएंगे माओवादी? देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी? कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी? दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज.....के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते, जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद, तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी उसकी मृत्यु का कारण बनती है, तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में तब यह विचार और चुभने लगता है,जब देश की प्रगति के नाम पर विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से यह सोच तब हमें तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को आज भी प्राथमिकता नहीं मिली क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं? क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है? या है उसे पर इनका भी हक यह सबरी केवट का देश है तो गाली से इनका स्वागत क्यों? ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों? जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो ©Priya Kumari Niharika

#sad_shayari  White  बांट दो सबको,  संतुलन बना रहेगा
 पर संतुलन तो बराबरी हुई ना?
 जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो ,
 यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी?
 प्रजा कौन है,और राजा कौन?
 फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा
 सबको ज्ञात होनी चाहिए
 कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, 
और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं,
 व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज
 किसने निर्मित कि ये खाई,  ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच?
 स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार,
 सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार 
 दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई
  मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े
 छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे 
 अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के
 और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे?
 जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग 
 कब तक कहलाएंगे माओवादी?
 देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी?
 कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी?
 दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां 
 व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से
 आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई 
 आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज.....के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते,
 जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है 
आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद,
 तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी
उसकी मृत्यु का कारण बनती है,
 तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर 
 डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना 
 और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर
तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में 
तब यह विचार और चुभने लगता है,जब देश की प्रगति के नाम पर 
 विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से
 यह सोच तब हमें तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी 
 पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर 
मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को 
 आज भी प्राथमिकता नहीं मिली 
 क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं?
 क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है?
 या है उसे पर इनका भी हक 
 यह सबरी केवट का देश है तो गाली से इनका स्वागत क्यों?
 ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों?
 जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये 
 अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं 
 याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं 
 अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे 
 तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो

©Priya Kumari Niharika
#SAD  پیار سے سمجھایا کریں ، بات کیا کریں ، اپنی بات رکھا کریں ۔
جب آپشن ہو نرمی سے ، حکمت سے ، دھیمے لہجے میں بات کرنے کی تو ترش و تیز لب و لہجہ یا اگلے کے گلے ہی پڑ جانا صرف بیزار کرے گا بلکہ سامنے والے پریشان حال کو اور اداس کرے گا ۔ 
اکثر مشاہدہ رہا کہ بات اتنی قیمتی ، گہری اور کارآمد ہوتی ہے لیکن کہنے کا انداز ، وقت اور الفاظ ساری قیمت گرا دیتے ہیں ۔ ایسی تیز ٹون رکھی جاتی ہے یا ایسے ہلکے الفاظ کہ ساری طبیعت ہی مکدر ہوجائے ۔ 
اپنے جملوں کو مزین کرنا سیکھیے ۔۔۔ اچھے الفاظ اور خوبصورت و معتدل لہجے میں کی گئی بات دل تک اثر رکھتی ہے ۔

©व@हिD️
#love_shayari  White अंधेरों में कुछ बाते छुपी हुई है 
लगता है वो इश्क़ का पैगाम है...

©Kuldeep singh rj09

#love_shayari @Author Shivam kumar Mishra बाबा ब्राऊनबियर्ड @rasmi जादूगर @Vijay Kumar

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