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New 18 days to go Status, Photo, Video

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#SAD

rock go go

108 View

#SAD

rock go go

99 View

#beingoriginal  😭

#beingoriginal Go to

99 View

part 18

90 View

#मराठीकविता  केसांना भांग पाडून
खिशाला रुमाल लावून 
आठवणीचं दफ्तर उघडून 
ओळखीचा चेहरा शोधुया
बाकावरची जागा अडवुया
नव्याने मैत्रीची सुरुवात करुया...

आठवणीच्या वाटेत
आनंदाचे क्षण असतील
गालातल्या गालात हसताना  
तुलाही कविता सुचतील...
शब्दांची जुळवाजुळव करताना..
पहिलीतील बाराखडी आठवेल....
सुखाची अंकगणित मांडताना
शाळा नेहमीच मनात उरेल....

©Pravin Pawade

School days

117 View

पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।। ©Vijay Sonwane

#लव  पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, 
जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. 
कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, 
कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. 
अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। 
होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, 
कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, 
कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो
की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , 
क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। 
कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, 
कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। 
फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।।

©Vijay Sonwane

18+

10 Love

#SAD

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#beingoriginal  😭

#beingoriginal Go to

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part 18

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#मराठीकविता  केसांना भांग पाडून
खिशाला रुमाल लावून 
आठवणीचं दफ्तर उघडून 
ओळखीचा चेहरा शोधुया
बाकावरची जागा अडवुया
नव्याने मैत्रीची सुरुवात करुया...

आठवणीच्या वाटेत
आनंदाचे क्षण असतील
गालातल्या गालात हसताना  
तुलाही कविता सुचतील...
शब्दांची जुळवाजुळव करताना..
पहिलीतील बाराखडी आठवेल....
सुखाची अंकगणित मांडताना
शाळा नेहमीच मनात उरेल....

©Pravin Pawade

School days

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पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।। ©Vijay Sonwane

#लव  पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, 
जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. 
कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, 
कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. 
अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। 
होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, 
कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, 
कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो
की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , 
क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। 
कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, 
कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। 
फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।।

©Vijay Sonwane

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