बंदिशें और ख्वाब
दिन कट जाते हैं हंसते-गाते,
कटती नहीं हैं ये लंबी रातें।
उसके ख्वाबों में जागता रहता हूं,
पर साथ देती नहीं हैं सांसें।
याद आती हैं उसकी बातें,
पर अब धीमी हैं ज़ज़्बातें।
मैं बुलाने की कोशिश करता हूं,
पर सुनती नहीं वो मेरी बातें।
कितना लंबा वक्त गुज़र गया,
देखे बिना सूनी हैं ये आंखें।
किसी बहाने से ही आ जाओ,
तुमसे करनी, तुम सी बातें।
कितने दूर चली गई हो तुम,
और कब से सुनी मेरी ये बाहें।
प्यार न सही, लड़ने ही आओ,
तेरे बिना भारी रहती हैं आंखें।
नहीं जानता कितना कसूर था,
सुकून न सही, देने आओ तकलीफें।
सज़ा मुकर्रर करने ही आ जाओ,
लेकर आना तुम वक्त सी ज़ंजीरें।
क्या पता आज़ाद हो जाऊं,
और खत्म हो जाए मेरी बंदिशें।
छुपा कर रखूंगा जख्म सारे,
तुम लेकर आना अपनी शमशीरें।
©theABHAYSINGH_BIPIN
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