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हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं, उनकी एक झलक पाने को बेकरार हुए बैठे हैं ।। उनके नाजुक हाथों से सजा पाने के कितनी सदियों से हम गुनाहगार हुए बैठे हैं ।। ©बेजुबान शायर shivkumar

#बेजुबानशायर143 #हिन्दीशायरी #बेजुबानशायर #गुनाहगार #बेकरार #कविता95  हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं,
उनकी एक झलक पाने को बेकरार हुए बैठे हैं ।।
उनके नाजुक हाथों से सजा पाने के
कितनी सदियों से हम गुनाहगार हुए बैठे हैं ।।

©बेजुबान शायर shivkumar

हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं, उनकी एक #झलक पाने को #बेकरार हुए बैठे हैं ।। उनके #नाजुक हाथों से #सजा पाने के कितनी सदियों से

13 Love

दोहा :- पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर । ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।। प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग । बात वही बतला गये , लगा जिन्हें था रोग ।। बात-बात पर जग भला , क्यों देता है टोक । कहाँ आयु है प्रेम की , जो लूँ दिल को रोक ।। करते रहते तंज हैं , क्या होता है प्यार । सब कुछ तो हैं हारतें , दिल को भी दें हार ।। जीवन से अब हार कर , पाया है यह सीख । पेरी जाती है सदा , जग में देखो ईख ।। आशा की पूँजी बड़ी, कभी न होती खर्च । रखिये अपने साथ नित , चाहे जायें चर्च ।। आशा हो तो ईश भी , मिल जाते हैं द्वार । वरना रहिये खोजते , बन पागल संसार ।। युग कितने बीते यहाँ , किया नहीं विश्राम । आशाओं से राम जी , लौटे अपने धाम ।। धैर्य रखे इंसान तो , सब संभव हो जाय । आशाओं के दीप से , जग रोशन हो जाय ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :-
पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर ।
ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।।

प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग ।
बात वही बतला गये , लगा जिन्हें था रोग ।।

बात-बात पर जग भला , क्यों देता है टोक ।
कहाँ आयु है प्रेम की , जो लूँ दिल को रोक ।।

करते रहते तंज हैं , क्या होता है प्यार ।
सब कुछ तो हैं हारतें , दिल को भी दें हार ।।

जीवन से अब हार कर , पाया है यह सीख ।
पेरी जाती है सदा , जग में देखो ईख ।।

आशा की पूँजी बड़ी, कभी न होती खर्च ।
रखिये अपने साथ नित , चाहे जायें चर्च ।।

आशा हो तो ईश भी , मिल जाते हैं द्वार ।
वरना रहिये खोजते , बन पागल संसार ।।

युग कितने बीते यहाँ , किया नहीं विश्राम ।
आशाओं से राम जी , लौटे अपने धाम ।।

धैर्य रखे इंसान तो , सब संभव हो जाय ।
आशाओं के दीप से , जग रोशन हो जाय ।।          महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर । ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।। प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग । बात वही बतला गय

10 Love

#SAD  White लोग लड़ते है मिलने के खातिर 
अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है 
जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी 
भूल नही पाउँगा वो लम्हा जब तुमने 
दिल की धड़कने सुनाई थी

ये बिछड़ना-मिलना यह तो शायद मोहब्बत है 
अपने प्यार को वो दे देना जिसकी उसको जरूरत है 
हम दोनों थे कैद कही अपनी समझ की सलाखों में 
तुमने ऐसा रिहा किया खुद आज़ादी शर्मायी थी 

जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी 
मिलेंगे हम ये वादा है रोज रात को चाँद के जरिये 
मैं भेजूंगा पैगाम तुझे इस बहती हवा के जरिये 
साथ रहेंगे एक सोच के जरिये नाजुक नाजुक यादों में 
तुम कहना एक ज़िद्दी पडोसी अपने घर भी आया था
 
लोग लड़ते है मिलने के खातिर 
अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है 
चलो बहुत हुआ अब चुप रहूँगा चुपी में मज़मून है 
ज्यादा तुम जैसा बनना कहूँगा बस मेरा इतना ही है वादा
इससे ज्यादा कहूंगा कुछ तो फूट पड़ेगी रुलाई भी 

लोग लड़ते है मिलने के खातिर 
अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है 
जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी

©Naveen

लोग लड़ते है मिलने के खातिर  अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है  जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी  भूल नही पाउँगा वो लम्हा जब तुमने 

342 View

हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं, उनकी एक झलक पाने को बेकरार हुए बैठे हैं ।। उनके नाजुक हाथों से सजा पाने के कितनी सदियों से हम गुनाहगार हुए बैठे हैं ।। ©बेजुबान शायर shivkumar

#बेजुबानशायर143 #हिन्दीशायरी #बेजुबानशायर #गुनाहगार #बेकरार #कविता95  हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं,
उनकी एक झलक पाने को बेकरार हुए बैठे हैं ।।
उनके नाजुक हाथों से सजा पाने के
कितनी सदियों से हम गुनाहगार हुए बैठे हैं ।।

©बेजुबान शायर shivkumar

हुस्न-ए-बेनजीर के तलबगार हुए बैठे हैं, उनकी एक #झलक पाने को #बेकरार हुए बैठे हैं ।। उनके #नाजुक हाथों से #सजा पाने के कितनी सदियों से

13 Love

दोहा :- पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर । ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।। प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग । बात वही बतला गये , लगा जिन्हें था रोग ।। बात-बात पर जग भला , क्यों देता है टोक । कहाँ आयु है प्रेम की , जो लूँ दिल को रोक ।। करते रहते तंज हैं , क्या होता है प्यार । सब कुछ तो हैं हारतें , दिल को भी दें हार ।। जीवन से अब हार कर , पाया है यह सीख । पेरी जाती है सदा , जग में देखो ईख ।। आशा की पूँजी बड़ी, कभी न होती खर्च । रखिये अपने साथ नित , चाहे जायें चर्च ।। आशा हो तो ईश भी , मिल जाते हैं द्वार । वरना रहिये खोजते , बन पागल संसार ।। युग कितने बीते यहाँ , किया नहीं विश्राम । आशाओं से राम जी , लौटे अपने धाम ।। धैर्य रखे इंसान तो , सब संभव हो जाय । आशाओं के दीप से , जग रोशन हो जाय ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :-
पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर ।
ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।।

प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग ।
बात वही बतला गये , लगा जिन्हें था रोग ।।

बात-बात पर जग भला , क्यों देता है टोक ।
कहाँ आयु है प्रेम की , जो लूँ दिल को रोक ।।

करते रहते तंज हैं , क्या होता है प्यार ।
सब कुछ तो हैं हारतें , दिल को भी दें हार ।।

जीवन से अब हार कर , पाया है यह सीख ।
पेरी जाती है सदा , जग में देखो ईख ।।

आशा की पूँजी बड़ी, कभी न होती खर्च ।
रखिये अपने साथ नित , चाहे जायें चर्च ।।

आशा हो तो ईश भी , मिल जाते हैं द्वार ।
वरना रहिये खोजते , बन पागल संसार ।।

युग कितने बीते यहाँ , किया नहीं विश्राम ।
आशाओं से राम जी , लौटे अपने धाम ।।

धैर्य रखे इंसान तो , सब संभव हो जाय ।
आशाओं के दीप से , जग रोशन हो जाय ।।          महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर । ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।। प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग । बात वही बतला गय

10 Love

#SAD  White लोग लड़ते है मिलने के खातिर 
अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है 
जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी 
भूल नही पाउँगा वो लम्हा जब तुमने 
दिल की धड़कने सुनाई थी

ये बिछड़ना-मिलना यह तो शायद मोहब्बत है 
अपने प्यार को वो दे देना जिसकी उसको जरूरत है 
हम दोनों थे कैद कही अपनी समझ की सलाखों में 
तुमने ऐसा रिहा किया खुद आज़ादी शर्मायी थी 

जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी 
मिलेंगे हम ये वादा है रोज रात को चाँद के जरिये 
मैं भेजूंगा पैगाम तुझे इस बहती हवा के जरिये 
साथ रहेंगे एक सोच के जरिये नाजुक नाजुक यादों में 
तुम कहना एक ज़िद्दी पडोसी अपने घर भी आया था
 
लोग लड़ते है मिलने के खातिर 
अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है 
चलो बहुत हुआ अब चुप रहूँगा चुपी में मज़मून है 
ज्यादा तुम जैसा बनना कहूँगा बस मेरा इतना ही है वादा
इससे ज्यादा कहूंगा कुछ तो फूट पड़ेगी रुलाई भी 

लोग लड़ते है मिलने के खातिर 
अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है 
जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी

©Naveen

लोग लड़ते है मिलने के खातिर  अपनी तो बिछड़ जाने की लड़ाई है  जीत मिली दोनों की बस आंसू की कमाई थी  भूल नही पाउँगा वो लम्हा जब तुमने 

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