सवेरे तड़के किसी के रोने की आवाज से आंख खुली माँ ने बताया कि शंभुनाथ जी की माता ,शेखर की दादी का देहावसान हो गया है । हाथ मुँह धो कर उनके घर पहुंचा जहाँ पहले ही गांव के बहुत से लोग जमा थे।ये गांव की खूबसूरती कह सकते हैं कि हर किसी के सुख दुख में यहा सारे भेदभाव गिले शिकवे मिटा कर कन्धे से कन्धा मिला खड़े हो जाते हैं ।
शेखर और मैं हमउम्र थे साथ साथ पढ़े बचपन जिया । मैने मेरी दादी को नहीं देखा था ,मेरे लिए शेखर की दादी ही मेरी दादी के समान मूर्तिमान है ऐसा मान लिया था । मुझे शेखर से बुला कर कहा सेज सम्बन्धियों को खबर कर दे । ये कार्य संसार के सबसे दुष्कर कार्यों में से एक है किसी की मौत की खबर देना । मैने शेखर के मोबाइल से एक एक करके सबको सूचना देना शुरू किया कि दादी अब इस दुनिया में नहीं रही वो परलोक सिधार गयी । ऐसी बात बताने में कुछ भी प्रत्युत्तर को आशा नही होती है । कुछ लोग कस्बे में चले गए क्रियाकर्म का सामान लाने ,कुछ लकडियो के इंतजाम में जुट गए । धीरे धीरे रिश्तेदारों का आना शुरू हुआ और दादी को अंतिम यात्रा के लिए ले जाया गया।सम्पूर्ण विधिविधान से अग्नि संस्कार किया गया ।
कुछ दिन बाद ऐसे ही कुछ लोगों की टोली बरगद के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर जमा थी सब अपनी अपनी बातों मशगूल थे कोई भारत के क्रिकेट वर्ल्डकप की हार पर अपनी एक्सपर्ट एडवाइस दे रहा तो कोई केजरीवाल के जेल चले जाने पर बतिया रहा ।
शेखर की दादी की मौत का शेखर को बिल्कुल भी दुख नही है दो और लोंगो की तरफ़ देख कर प्रवीण बोलने लगा जैसे उनसे हां करवा कर खुद की बात को प्रमाणित कर रहा हो तपाक से मैंने पूछा कि तुम्हें कैसे पता कि उसको दुख है या नही ?
मुसकराते हुए वो बोला देखा नही शेखर की आंखों में आँसू बहुत कम थे और वो ज्यादा रोया भी नही ,कितने निष्ठुर और निर्मम लोग हो गए है किसी के अपने के चले जाने के दुख का मापन उसके आंसुओ और रोने से करने लगे हैं । लोग ओछी बात करने से पहले सोचते तक नही है ,करूणा को लगता है लोगों ने अपने ज़ेहन से निकाल फेंका है ।
©Dr.Govind Hersal
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