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=========================== ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी =========================== त्याग सती स्वरूप यज्ञ वेदी में, हिमेश घर जन्मीं ब्रह्मचारिणी रूप। करने शिव को प्रसन्न तपस्या, की हैं दृढ़-कठोर हजारों वर्ष अनूप।। ब्रह्मचारिणी तप की चारिणी, दाएं हाथ माला बाएं में है कमंडल। श्वेत वस्त्र,ज्ञान,ध्यान,वैराग्य से, तपस्विनी की ओजस्वी प्रभामंडल।। ब्रह्म को तप से धारण कर लेवें, वही पावन आत्मा तो है ब्रह्मचारिणी। सुफल समर्पित पुरुषार्थ दिलाते, आयु,आरोग्य,अभय,सौभाग्य भरणी।। तो नवरात्रि द्वितीय दिवस आओ, ब्रह्मचारिणी की आशीष हेतु करें युक्ति। माॅंं तपस्या की मर्मज्ञ इस जगत में, दिलाएगी मोह-माया तनाव से मुक्ति।। नवरात्रि नित्य नव तप के साधन, तपोबल से हष्ट-पुष्ट होते हैं तन-मन। ब्रह्मचारिणी की आराधना भक्तों, ईश्वर को समर्पित पावनतम जीवन।। तो आज अपनाऍं हम भी सादगी, संवारने ए कोहिनूरी हीरा जिंदगानी। छल-कपट-प्रपंच से मुक्त होकर, ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी।। ========================== ©बेजुबान शायर shivkumar

#ब्रह्मचारिणी #नवरात्रि #कविता95 #भक्ति #navratri2024 #navratri2025  ===========================
       ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी 
===========================

त्याग सती स्वरूप यज्ञ वेदी में,
        हिमेश घर जन्मीं ब्रह्मचारिणी रूप।
करने शिव को प्रसन्न तपस्या, 
       की हैं दृढ़-कठोर हजारों वर्ष अनूप।।

ब्रह्मचारिणी तप की चारिणी,
        दाएं हाथ माला बाएं में है कमंडल।
श्वेत वस्त्र,ज्ञान,ध्यान,वैराग्य से,
        तपस्विनी की ओजस्वी प्रभामंडल।।

ब्रह्म को तप से धारण कर लेवें,
       वही पावन आत्मा तो है ब्रह्मचारिणी।
सुफल समर्पित पुरुषार्थ दिलाते,
      आयु,आरोग्य,अभय,सौभाग्य भरणी।।

तो नवरात्रि द्वितीय दिवस आओ,
    ब्रह्मचारिणी की आशीष हेतु करें युक्ति।
माॅंं तपस्या की मर्मज्ञ इस जगत में,
    दिलाएगी मोह-माया तनाव से मुक्ति।।

नवरात्रि नित्य नव तप के साधन,
      तपोबल से हष्ट-पुष्ट होते हैं तन-मन।
ब्रह्मचारिणी की आराधना भक्तों,
     ईश्वर को समर्पित पावनतम जीवन।।

तो आज अपनाऍं हम भी सादगी,
     संवारने ए कोहिनूरी हीरा जिंदगानी।
छल-कपट-प्रपंच से मुक्त होकर,
      ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी।।

==========================

©बेजुबान शायर shivkumar

#navratri #navratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #कविता95 #नवरात्रि भक्ति सागर भक्ति भजन भक्ति संगीत भक्ति गीत भक्ति गाना @Sethi Ji Ks

19 Love

#Motivational

Birth and death are inevitable जन्म और मृत्यु अनिवार्य हैं काल के प्रभाव से जो जीवन हमें मिलता हैं उसकी समाप्ति भी होती हैं यही पृथ्वी /

144 View

White 🙏हे प्रभु आत्मा दिव्य प्रकाश हैं वह कभी नहीं समाप्त होता हैं परंतु शरीर की एक निश्चित अवधि हैं जिसे समाप्त होना अनिवार्य होता हैं इस पृथ्वी ,सृष्टि ,धरती,🌎🌍 का यही नियम हैं कालचक्र अपना प्रभाव दिखाता हैं जन्म से मृत्यु का सफर चलता जाता हैं प्राणी, इंसान, मनुष्य, को जो शरीर प्राप्त होता हैं वह समय के अनुसार समाप्त होता हैं 🙏 ©person

#Bhakti #Shiva  White 🙏हे प्रभु आत्मा दिव्य प्रकाश हैं वह कभी नहीं समाप्त होता हैं 
परंतु शरीर की एक निश्चित अवधि हैं 
जिसे समाप्त होना अनिवार्य होता हैं 
इस पृथ्वी ,सृष्टि ,धरती,🌎🌍 का यही नियम हैं 
कालचक्र अपना प्रभाव दिखाता हैं 
जन्म से मृत्यु का सफर चलता जाता हैं 
प्राणी, इंसान, मनुष्य, को जो शरीर प्राप्त होता हैं 
वह समय के अनुसार समाप्त होता हैं 🙏

©person

#Shiva 🙏🙏🙏🙏‌ 🙏हे प्रभु आत्मा दिव्य प्रकाश हैं वह कभी नहीं समाप्त होता हैं परंतु शरीर की एक निश्चित अवधि हैं जिसे समाप्त होना अनिवार्य होत

11 Love

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

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=========================== ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी =========================== त्याग सती स्वरूप यज्ञ वेदी में, हिमेश घर जन्मीं ब्रह्मचारिणी रूप। करने शिव को प्रसन्न तपस्या, की हैं दृढ़-कठोर हजारों वर्ष अनूप।। ब्रह्मचारिणी तप की चारिणी, दाएं हाथ माला बाएं में है कमंडल। श्वेत वस्त्र,ज्ञान,ध्यान,वैराग्य से, तपस्विनी की ओजस्वी प्रभामंडल।। ब्रह्म को तप से धारण कर लेवें, वही पावन आत्मा तो है ब्रह्मचारिणी। सुफल समर्पित पुरुषार्थ दिलाते, आयु,आरोग्य,अभय,सौभाग्य भरणी।। तो नवरात्रि द्वितीय दिवस आओ, ब्रह्मचारिणी की आशीष हेतु करें युक्ति। माॅंं तपस्या की मर्मज्ञ इस जगत में, दिलाएगी मोह-माया तनाव से मुक्ति।। नवरात्रि नित्य नव तप के साधन, तपोबल से हष्ट-पुष्ट होते हैं तन-मन। ब्रह्मचारिणी की आराधना भक्तों, ईश्वर को समर्पित पावनतम जीवन।। तो आज अपनाऍं हम भी सादगी, संवारने ए कोहिनूरी हीरा जिंदगानी। छल-कपट-प्रपंच से मुक्त होकर, ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी।। ========================== ©बेजुबान शायर shivkumar

#ब्रह्मचारिणी #नवरात्रि #कविता95 #भक्ति #navratri2024 #navratri2025  ===========================
       ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी 
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त्याग सती स्वरूप यज्ञ वेदी में,
        हिमेश घर जन्मीं ब्रह्मचारिणी रूप।
करने शिव को प्रसन्न तपस्या, 
       की हैं दृढ़-कठोर हजारों वर्ष अनूप।।

ब्रह्मचारिणी तप की चारिणी,
        दाएं हाथ माला बाएं में है कमंडल।
श्वेत वस्त्र,ज्ञान,ध्यान,वैराग्य से,
        तपस्विनी की ओजस्वी प्रभामंडल।।

ब्रह्म को तप से धारण कर लेवें,
       वही पावन आत्मा तो है ब्रह्मचारिणी।
सुफल समर्पित पुरुषार्थ दिलाते,
      आयु,आरोग्य,अभय,सौभाग्य भरणी।।

तो नवरात्रि द्वितीय दिवस आओ,
    ब्रह्मचारिणी की आशीष हेतु करें युक्ति।
माॅंं तपस्या की मर्मज्ञ इस जगत में,
    दिलाएगी मोह-माया तनाव से मुक्ति।।

नवरात्रि नित्य नव तप के साधन,
      तपोबल से हष्ट-पुष्ट होते हैं तन-मन।
ब्रह्मचारिणी की आराधना भक्तों,
     ईश्वर को समर्पित पावनतम जीवन।।

तो आज अपनाऍं हम भी सादगी,
     संवारने ए कोहिनूरी हीरा जिंदगानी।
छल-कपट-प्रपंच से मुक्त होकर,
      ब्रह्मचारिणी की चरणों में करें बंदगी।।

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©बेजुबान शायर shivkumar

#navratri #navratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #कविता95 #नवरात्रि भक्ति सागर भक्ति भजन भक्ति संगीत भक्ति गीत भक्ति गाना @Sethi Ji Ks

19 Love

#Motivational

Birth and death are inevitable जन्म और मृत्यु अनिवार्य हैं काल के प्रभाव से जो जीवन हमें मिलता हैं उसकी समाप्ति भी होती हैं यही पृथ्वी /

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White 🙏हे प्रभु आत्मा दिव्य प्रकाश हैं वह कभी नहीं समाप्त होता हैं परंतु शरीर की एक निश्चित अवधि हैं जिसे समाप्त होना अनिवार्य होता हैं इस पृथ्वी ,सृष्टि ,धरती,🌎🌍 का यही नियम हैं कालचक्र अपना प्रभाव दिखाता हैं जन्म से मृत्यु का सफर चलता जाता हैं प्राणी, इंसान, मनुष्य, को जो शरीर प्राप्त होता हैं वह समय के अनुसार समाप्त होता हैं 🙏 ©person

#Bhakti #Shiva  White 🙏हे प्रभु आत्मा दिव्य प्रकाश हैं वह कभी नहीं समाप्त होता हैं 
परंतु शरीर की एक निश्चित अवधि हैं 
जिसे समाप्त होना अनिवार्य होता हैं 
इस पृथ्वी ,सृष्टि ,धरती,🌎🌍 का यही नियम हैं 
कालचक्र अपना प्रभाव दिखाता हैं 
जन्म से मृत्यु का सफर चलता जाता हैं 
प्राणी, इंसान, मनुष्य, को जो शरीर प्राप्त होता हैं 
वह समय के अनुसार समाप्त होता हैं 🙏

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#Shiva 🙏🙏🙏🙏‌ 🙏हे प्रभु आत्मा दिव्य प्रकाश हैं वह कभी नहीं समाप्त होता हैं परंतु शरीर की एक निश्चित अवधि हैं जिसे समाप्त होना अनिवार्य होत

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गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

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