Unsplash ऐ गौरवर्ण सौंदर्य प्रखर ,ऐ विश्वविमोहिनी चन्द्र छटा..!
बिखरे बिखरे लहरायें पवन संग केश कांतिमय काली घटा..!
भाल विशाल ,नासिका मनोहर मध्यभाग अश्विन तारा..!
कर्णमयूर भ्रमत सुखकानन सुयश गात भूमण्डल सारा..!
इन्द्रचाप भृकुटि ललाट झप झप पलकें रजनी प्रभात..!
नीलाम्बर अयन नयन विहरे द्विभानु चहुँदिसि करत विभात..!
कोकिलाकण्ठ,चंचल चितवन,पल्लवित कुसुम कौमार्य संग..!
गजगामिनी, मनभावनी , मन भँवर डोल उठे जलतरंग..!
अधरं मधुरं बिच दसनमणि शोभित कपोल तल नीलमणि
अवलम्बित रुप रुपसी से, प्रेमातुर घनधनी प्रेममणि..!
उद्गम सुख,संगम देहप्रान नखसिख सुन्दर कंचन कंचन..!
चन्द्रांग,चकोरहि चक्षु चहै ,हिय प्यास बुझत नहीं कोटि नयन..!
©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)
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