White पूछती है लेखिनी कह कौन चित्त का चोर है..!!
कह कौन मनमंदिर बसा कह कौन वह सिरमोर है..!!
कहता हूं तब,जब जो मिला सब भावना का जोर है..
इक यंत्र हूं कुछ भी नहीं कागज़ कलम तक तोर है..!!
जो जल रही है ज्योत पावन प्रेम जिसका नाम है
बस है वही निर्मल छवि दैदीप्यता नहि थोर है..!!
भावों की माटी में मिला मैं नीर अपने प्रेम का
गढ़ता हूं जब मूरत मनोहर न दिखा कोई छोर है..!!
तृण का हूं तृण, सर्वज्ञ वो , जिससे उजाला है मेरा
हूँ मैं अपावन पावना वो , मैं निशा वो भोर है..!!
उसमें मुझे जो भी दिखा, उसका ही उसको सौंपता
फिर भी ना जाने क्यूँ लगे व्यक्तित्व वो घनघोर है..!!
उससे ही मिलती प्रेरणा उससे ही मिलती है दिशा
फिर भी ना जाने क्यूँ मेरी चर्चाएं चारों ओर है..
©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)
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