White हर दिन इंतज़ार एक शाम का...
हर रात पैरहन, उलझन, वेदना और भी बहुत कुछ,
फिर हर सुबह सबकुछ रखकर किनारे
चल देना किसी ऐसे सफर पर,
जिसकी मंज़िल फिर से वही अनमनी शाम है,
जिसके पहलू में वक्त है, लेकिन जरा सा,
आंखें हैं थोड़ी बुझी सी, स्मृतियाँ हैं कुछ धुंधली - सी
स्वप्न नहीं है लेकिन राख है,
बात नहीं है लेकिन याद है,
उम्मीद है या नही, ठीक से नहीं कह सकते
लेकिन जैसे हैं उम्र भर ऐसे भी नहीं रह सकते,
फिर भी अब स्वप्न की चाह नहीं,
सच कहें तो, कोई राह नहीं,
आंसू बहते हैं तो पोंछ लेती हूँ,
सांसों से बगावत कर लूँ यहाँ तक सोच लेती हूँ,
लेकिन फिर....
कुछ नहीं...
कहीं कुछ भी नहीं...
न आस, न विश्वास न इच्छा न प्रयास
अब डर भी 1[ लगता,
न कुछ कहने की इच्छा ही है
अपनों से नहीं तो गैरों से क्या शिकायत हो,
मन के थक जाने के बाद कैसे बगावत हो,
विरोध के लिए सामर्थ्य चाहिए,
बहस के लिए शब्द, और तर्क
भावना का कहीं कोई महत्व नहीं,
वह सर्वत्र तिरस्कृत ही होती है,
और मुझमें तो सदैव से भावना ही प्रधान है
फिर तर्क कहाँ से लाऊँ,
इसलिए मैने चुन लिया है अश्रुओं से सिंचित मौन को
बोलने दो इस संसार को,
होता है तो होने दो परिहास
प्राणों का, मन का, और अंततः आत्मा का भी....
_sneh
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