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#कविता  
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनाये,
राष्ट्र की समस्याओ को मिटा ,
नये  युग  का  दीपक  जलाये,
प्रकाशित राष्ट्र हों, 
कुछ  ठोस  उपाय  कर  जायें,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनाये।

जाति, धर्म की खाई को पाट जायें,
दिलो को बांटने बाली राजनीति का,
एकता की शक्ति से अंत कर जाये,
सब को समान अधिकार हों,
ऐसा ठोस उपाय कर  जायें,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें।

हमें अगड़े पिछड़े में बांटने बालो को,
कड़ा सबक सिखायें,
आरक्षण के रावण का बध कर जाये,
राष्ट्र को निगल रहें भ्रष्टाचार को,
हम निगल जाये,
राष्ट्र घातियों से निपटने को,
स्थायी ठोस उपाय कर जाये,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें।

माँ भारती के सारे कष्ट मिटा जायें,
छुपे हुये सपोलों  को  मार भगायें,
बिघटनकारी राजनीति का अंत कर जाये,
राष्ट्र रक्षा के वलिदानियों को,
ऐसा ठोस उपहार  दें जायें,
कि वो स्वर्ग में भी देख कर मुस्कराये,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें।

©IG @kavi_neetesh

इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें ------------------------------------ इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनाये, राष्ट्र की समस्याओ को मिटा , नये युग का

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White शरद ऋतु का आगमन।। गदराई धानों की बाली, है पसरी चहुँमुख हरियाली। गया दशहरा, आया मेला, धूप गुनगुना, मोहक बेला। पड़ने लगे तुहिन कण। शरद ऋतु का आगमन।। गर्म कपड़े धुलने लगे हैं, बूढ़े अब ठिठुरने लगे हैं। क्षितिज़ पर छाने लगे कुहरें, परत सफेद गगन में बिखरे। रवि रथ पर दक्षिणायन । शरद ऋतु का आगमन।। उफनाईं नदियाँ सिमट रही, तने से लताएँ लिपट रही। धीवर चले ले जलधि में नाव, मन मोहक अब लगता गाँव। निखर उठे हैं तन - मन। शरद ऋतु का आगमन।। लहराते खेतों में किसान, मन ही मन गा रहा है गान। धरती सार सहज बतलाती, धूप छांव जीवन समझाती। नाच रहे मस्त मगन , शरद ऋतु का आगमन।। ©बेजुबान शायर shivkumar

#हरियाली #ठिठुरने #नदियाँ #कविता #बरसात #मौसम  White शरद ऋतु का आगमन।।

गदराई धानों की बाली,
     है पसरी चहुँमुख हरियाली।
           गया दशहरा, आया मेला,
               धूप गुनगुना, मोहक बेला।

                     पड़ने लगे तुहिन कण।
                       शरद ऋतु का आगमन।।

             
गर्म कपड़े धुलने लगे हैं, 
    बूढ़े अब ठिठुरने लगे हैं।
         क्षितिज़ पर छाने लगे कुहरें,
               परत सफेद गगन में बिखरे।
                      
                      रवि रथ पर दक्षिणायन ।
                          शरद ऋतु का आगमन।।

            
उफनाईं नदियाँ सिमट रही,
      तने से लताएँ लिपट रही।
            धीवर चले ले जलधि में नाव,
                 मन मोहक अब लगता गाँव।

                     निखर उठे हैं तन - मन।
                          शरद ऋतु का आगमन।।

लहराते खेतों में किसान,
     मन ही मन गा रहा है गान।
           धरती सार  सहज बतलाती,
                 धूप छांव जीवन समझाती।
                         
                      नाच रहे मस्त मगन ,
                            शरद ऋतु का आगमन।।

©बेजुबान शायर shivkumar

#मौसम @Sethi Ji @Bhanu Priya @Kshitija @Sana naaz @puja udeshi हिंदी कविता कविताएं कविता कोश बारिश पर शरद ऋतु का आगमन।। गदराई धानों की बा

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#कविता  
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनाये,
राष्ट्र की समस्याओ को मिटा ,
नये  युग  का  दीपक  जलाये,
प्रकाशित राष्ट्र हों, 
कुछ  ठोस  उपाय  कर  जायें,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनाये।

जाति, धर्म की खाई को पाट जायें,
दिलो को बांटने बाली राजनीति का,
एकता की शक्ति से अंत कर जाये,
सब को समान अधिकार हों,
ऐसा ठोस उपाय कर  जायें,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें।

हमें अगड़े पिछड़े में बांटने बालो को,
कड़ा सबक सिखायें,
आरक्षण के रावण का बध कर जाये,
राष्ट्र को निगल रहें भ्रष्टाचार को,
हम निगल जाये,
राष्ट्र घातियों से निपटने को,
स्थायी ठोस उपाय कर जाये,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें।

माँ भारती के सारे कष्ट मिटा जायें,
छुपे हुये सपोलों  को  मार भगायें,
बिघटनकारी राजनीति का अंत कर जाये,
राष्ट्र रक्षा के वलिदानियों को,
ऐसा ठोस उपहार  दें जायें,
कि वो स्वर्ग में भी देख कर मुस्कराये,
इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें।

©IG @kavi_neetesh

इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायें ------------------------------------ इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनाये, राष्ट्र की समस्याओ को मिटा , नये युग का

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White शरद ऋतु का आगमन।। गदराई धानों की बाली, है पसरी चहुँमुख हरियाली। गया दशहरा, आया मेला, धूप गुनगुना, मोहक बेला। पड़ने लगे तुहिन कण। शरद ऋतु का आगमन।। गर्म कपड़े धुलने लगे हैं, बूढ़े अब ठिठुरने लगे हैं। क्षितिज़ पर छाने लगे कुहरें, परत सफेद गगन में बिखरे। रवि रथ पर दक्षिणायन । शरद ऋतु का आगमन।। उफनाईं नदियाँ सिमट रही, तने से लताएँ लिपट रही। धीवर चले ले जलधि में नाव, मन मोहक अब लगता गाँव। निखर उठे हैं तन - मन। शरद ऋतु का आगमन।। लहराते खेतों में किसान, मन ही मन गा रहा है गान। धरती सार सहज बतलाती, धूप छांव जीवन समझाती। नाच रहे मस्त मगन , शरद ऋतु का आगमन।। ©बेजुबान शायर shivkumar

#हरियाली #ठिठुरने #नदियाँ #कविता #बरसात #मौसम  White शरद ऋतु का आगमन।।

गदराई धानों की बाली,
     है पसरी चहुँमुख हरियाली।
           गया दशहरा, आया मेला,
               धूप गुनगुना, मोहक बेला।

                     पड़ने लगे तुहिन कण।
                       शरद ऋतु का आगमन।।

             
गर्म कपड़े धुलने लगे हैं, 
    बूढ़े अब ठिठुरने लगे हैं।
         क्षितिज़ पर छाने लगे कुहरें,
               परत सफेद गगन में बिखरे।
                      
                      रवि रथ पर दक्षिणायन ।
                          शरद ऋतु का आगमन।।

            
उफनाईं नदियाँ सिमट रही,
      तने से लताएँ लिपट रही।
            धीवर चले ले जलधि में नाव,
                 मन मोहक अब लगता गाँव।

                     निखर उठे हैं तन - मन।
                          शरद ऋतु का आगमन।।

लहराते खेतों में किसान,
     मन ही मन गा रहा है गान।
           धरती सार  सहज बतलाती,
                 धूप छांव जीवन समझाती।
                         
                      नाच रहे मस्त मगन ,
                            शरद ऋतु का आगमन।।

©बेजुबान शायर shivkumar

#मौसम @Sethi Ji @Bhanu Priya @Kshitija @Sana naaz @puja udeshi हिंदी कविता कविताएं कविता कोश बारिश पर शरद ऋतु का आगमन।। गदराई धानों की बा

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