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#मोटिवेशनल #Motivation #Highlight #reelsfb #Quotes

💞 जीवन में कभी भी किसी के भावना के साथ मत खेलना | Best Powerful Motivational Quotes by Das Motivations #Highlight #reelsfb #Quotes #Reels #m

99 View

भाई किस किस ने इस फोन में सांप वाला गेम खेला है। comedy video

72 View

#shamawritesBebaak #writersofindia #poetsofindia #Sad_shayri #Live  White आजकल मुझको आती हिचकियाँ हर्गिज़ नहीं,
ऐसा लगता है,अब उसको मेरी जरूरत नहीं//१

वादे वफा तो बहुत किए थे उसने,आज बातो_
बातो मे कह दिया,मुझको अब तेरी जरूरत नहीं//२

मै फातिमा सी रूठ जाऊं,तु हुसैन सा मना ले मुझको,के
तुझमे तो*हुस्न_ए_सलूक की वो पहली सी जरूरत नहीं//३

इश्क़ की आड़ मे मुखलिसो से खेलना,ऐसे दिल्लगी
वाले मज़नू को*मुखलिस_ए_इश्क़ की जरूरत नहीं//४

उसे लगा के इश्क़ मे माशुक के हालात बदनले पड़ जाएंगे,मैने
     दिखाया जब उसे आइना तो लगा मुझे अब उसकी जरूरत नहीं//५

एहसास ए हिचकी दर हकीकत है तो सही,गर
       तुझको नही तो, फिर"शमा"को भी तेरी जरूरत नहीं//६
#shamawritesbebaak

©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#Sad_shayri आजकल मुझको आती हिचकियाँ हर्गिज़ नहीं,ऐसा लगता है,अब उसको मेरी जरूरत नहीं//१ वादे वफा तो बहुत किए थे उसने आज बातो बातो मे कह दिय

342 View

#विचार

बन उगी इसी प्रकार यह गेम है

144 View

दिमाग का शांति का विवेक का भी इस्तेमाल किया करो आदमी। Dear parents. बेटियो को अक्षर ज्ञान ही ज़रूरी है तो आपको हमसे ज्यादा ज्ञान है आप ही क

153 View

White गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे । पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।। जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने । उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ..... मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में । ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।। इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में । दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव.... नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में । बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।। अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में । झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव..... दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में । क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।। बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में । ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ... बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है । भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है । हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से । आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ

9 Love

#मोटिवेशनल #Motivation #Highlight #reelsfb #Quotes

💞 जीवन में कभी भी किसी के भावना के साथ मत खेलना | Best Powerful Motivational Quotes by Das Motivations #Highlight #reelsfb #Quotes #Reels #m

99 View

भाई किस किस ने इस फोन में सांप वाला गेम खेला है। comedy video

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#shamawritesBebaak #writersofindia #poetsofindia #Sad_shayri #Live  White आजकल मुझको आती हिचकियाँ हर्गिज़ नहीं,
ऐसा लगता है,अब उसको मेरी जरूरत नहीं//१

वादे वफा तो बहुत किए थे उसने,आज बातो_
बातो मे कह दिया,मुझको अब तेरी जरूरत नहीं//२

मै फातिमा सी रूठ जाऊं,तु हुसैन सा मना ले मुझको,के
तुझमे तो*हुस्न_ए_सलूक की वो पहली सी जरूरत नहीं//३

इश्क़ की आड़ मे मुखलिसो से खेलना,ऐसे दिल्लगी
वाले मज़नू को*मुखलिस_ए_इश्क़ की जरूरत नहीं//४

उसे लगा के इश्क़ मे माशुक के हालात बदनले पड़ जाएंगे,मैने
     दिखाया जब उसे आइना तो लगा मुझे अब उसकी जरूरत नहीं//५

एहसास ए हिचकी दर हकीकत है तो सही,गर
       तुझको नही तो, फिर"शमा"को भी तेरी जरूरत नहीं//६
#shamawritesbebaak

©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#Sad_shayri आजकल मुझको आती हिचकियाँ हर्गिज़ नहीं,ऐसा लगता है,अब उसको मेरी जरूरत नहीं//१ वादे वफा तो बहुत किए थे उसने आज बातो बातो मे कह दिय

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#विचार

बन उगी इसी प्रकार यह गेम है

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दिमाग का शांति का विवेक का भी इस्तेमाल किया करो आदमी। Dear parents. बेटियो को अक्षर ज्ञान ही ज़रूरी है तो आपको हमसे ज्यादा ज्ञान है आप ही क

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White गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे । पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।। जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने । उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ..... मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में । ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।। इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में । दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव.... नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में । बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।। अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में । झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव..... दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में । क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।। बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में । ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ... बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है । भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है । हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से । आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ

9 Love

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