चलो एक किरदार लिखती हूँ,
अपनी ज़िन्दगी में फ़िर वही प्यार लिखती हूँ
यूं बैठी थी मैं गुमसुम नीले आसमां के तले
सोच में पड़ी बेचैन अपने दोनों हाथों को मले
रंग बिरंगे बादलों से सवाल करती हुई,
अपने अकेलेपन से सहम कर डरती हुई,
हवा के झरोकों ने कुछ ज़ुल्फ़ें यूं उड़ाई..
तिरछी नज़रों से दिखी किसी अजनबी की परछाई..
नम आंखों से मैने नज़रें उठाकर देखा,
पलकों को धीरे धीरे उठा तो कभी झुककर देखा
और अचानक खोती सी चली गई मैं,
या जीते जागते सोती सी चली गई मैं...
कुछ तो था उसकी आँखों में,
जैसे पूछना चाहता हो हाल मेरा..
तेरी ख़ामोश निगाहों में पढ़ने लगी थी सवाल तेरा
थम गए थे आंशु कुछ मुस्कुराहट सी आ गई..
जैसे बेचैन सी ज़िंदगी मे सुकून की आहट सी आ गई...
निःशब्द थे दोनों और खामोशियाँ बोल उठी,
हल्की हवाएं थी और पानी की लहर डोल उठी..
नज़रे उठे उसकी तरफ़ तो कभी नज़रें झूंक जाए,
उस के पल में न जाने कितनी बार सांसे ही रुक जाए..
वो लालिमा लिए सूरज अपनी चाल चलने लगा,
सुहाना से शाम फ़िर अंधेरे में ढालने लगा...
चलो एक किरदार लिखती हूं,
अपनी ज़िंदगी मे फ़िर वहीं प्यार लिखती हूँ..
©kajal sinha
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