उम्मीदों के दामन लेकर
जी रहा हिंदुस्तान हैं ..!
ये दो पल की आंधी
भला हमें क्या डराए ,
तूफानों सा बंद घरों में लड़ता
ये मेरा सारा जहां हैं ..
भला पतझड़ से कहां
पेड़ डरते हैं !
उनपर बहार लेके आता 'वसंत हैं ..
हर मुसीबत पार की अबतक हमने ,
लड़ते रहो इसका भी एक दिन 'अंत हैं ..
बंद हो गए
मंदिर-ए-मशजीद-ओ- कायनात के !
आखिर पता भी चला
खुदा इंसान और भगवान इंसानिय में ही हैं
उम्मीदों के दामन लेकर
जी रहा हिंदुस्तान हैं ।।
@kavyajit#poetajit sonawane
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