क्या रखा है जमाने में, और क्या रखा है नाम कमाने में हम तो गुमनाम ही अच्छे हैं नाम हो रखा है उनसे तो बदनाम ही सही है 😍 खुद को पढ़ता हूं फिर छोड़ देता हूं एक पन्ना जिंदगी का मै, रोज मोड़ देता हूं। मेरे इन अल्फाजों को,, पढ़ने वाले तो बहुत है पर तलाश तो खामोशी समझने वालों की है। जब सामने कोई नहीं था सुनने के लिए तो मैं अल्फाजो के जरिए ,जज्बातों को कागज पर छापने लगा, बस तभी से शायद में लिखने लगा था ।।
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