आज खामोशियाँ ,टूटते-टूटते टूट सी गयी।
आज भावनायें,बहते-बहते बह सी गयी।
बावजुद इसके वो यूँ ही देखती रही मुझे।
आज साँसे,आखिर थमते-थमते थम सी गयी।
Shiv k Shriwas
जमाने को कोसना, अब छोड़ भी दो यार।
गलतफहमियों का धागा,अब तोड़ भी दो यार।
चलते-चलते जब,थक जाओगे तन्हा सफर में।
सुकूँ के बादलों के तरफ, अब रुख मोड़ भी दो यार।
Shiv k Shriwas
गर पहरा ना होता,दीवारों के उस पार।
समंदर नाप आता मै,साहिलों के उस पार।
तुम कहो तो तोड़ दूँ मैं,ये रस्मों रिवाज।
गर चाहो तुम सफर,चांद के उस पार।
Shiv k Shriwas
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