निर्भया
गलती तो उनकी थी, मगर आवाज उठाना मेरी गलती हो गयी।
कयामत वो चीख थी, खामोशी मेरा दिल चीर गयी।
गिरे हुए तो वो लोग थे ,उनकी हरकते , मुझको गिरा गयी।
बहन तो उनकी भी थी , मगर इस बहन को एक कलंक बना गये।
आबारा तो वो थे,मेरा घर से निकलना भी ,मुझे आबारा बना गये।
उनको पंख दे दिये , मेरे पंख काट मुझे पिंजड़े में बन्द कर गये।
ये समाज उनको कुछ ना सिखाये, मुझको को दायरे में रहना सीखा गये।
दखल अंदाजी उनकी नजरो ने की, दोषी मेरी चाल ढाल हो गयी।
अखिर कब तक सहेगी इसे हर लड़की, आज फिर एक निर्भया हो गयी।
©Parul Rathaur
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here