किन्नर
गुम हूं मैं,
गुमनाम हूं मैं,
इस दुनियां के विरान कोने में बैठी चुपचाप हूं मैं,
ना जात है मेरी, ना लिंग है कोई मेरा,
जन्म लेते ही एक अपराध हूं मैं,
क्योंकि किन्नर नाम हूं मैं।
बड़े होते ही मुझे भी उनके साथ जाना होगा,
मेरा कोई नही अपना,
इस दुनियां में ,
उन सब की तरह कहना होगा,
अल्फाजों की दुनियां से अनजान हूं मैं,
क्योंकि किन्नर नाम हूं मैं।
सब कहते है आशिर्वादो का भंडार हूं मैं,
फिर क्यों अपने ही घर में मेहमान हूं मैं,
मुझे भी अपनो के साथ रहना हैं,
अपने सपनों को पूरा होते देखना हैं,
फिर क्यों इतनी बदनाम हूं मैं,
क्योंकि किन्नर नाम हूं मैं।
सब कहते है दुनियां को शर्मसार करने वाली,
बस एक इंसान हूं मैं,
क्या यही पहचान हूं मैं,
क्योंकि किन्नर नाम हूं मैं।।
©Neha Pandey
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