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एक मेहनत :एक विश्वास कही बाधाएं आयेगी कही पहाड़ टूटेंगे कही समंदर में सुनामी छायेगी कही बंजर भूमि थरथराएगी कही खड़ी मंजिल गिर जायेगी कही दूर तक दिखाई देनी वाली इमारत भी ढह जायेगी मगर देखना एक मेहनत एक विश्वास से पु:न पहले जैसी फसल लहराएगी वो बंजर भूमि उपजाऊ बन जायेगी ढह गई जो इमारत वो पु:न खड़ी हो जायेगी। ©Jasuram

#OurRights  एक मेहनत :एक विश्वास

कही बाधाएं आयेगी
कही पहाड़ टूटेंगे
कही समंदर में सुनामी छायेगी
कही बंजर भूमि थरथराएगी
कही खड़ी मंजिल गिर जायेगी
कही दूर तक दिखाई देनी वाली इमारत भी ढह जायेगी
मगर देखना 
एक मेहनत एक विश्वास से 
पु:न पहले जैसी
फसल लहराएगी
वो बंजर भूमि उपजाऊ बन जायेगी
ढह गई जो इमारत वो पु:न खड़ी हो जायेगी।

©Jasuram

#OurRights

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हुई भोर- शीर्षक मन मीत संग प्रीत, लगी मन मोहन, तन सोहवन हुई भोर , जगी डोर , छुई छोर , निकला मोर चुगवन दाना, खेलत श्यामा नील गगन, छत्र छाया विचित्र माया, चित्रित काया। ©Jasuram

#कविता #Morningvibes #भोर  हुई भोर- शीर्षक

मन मीत संग प्रीत,
लगी मन मोहन,
तन सोहवन
हुई भोर ,
जगी डोर ,
छुई छोर ,
निकला मोर
चुगवन दाना,
खेलत श्यामा 
नील गगन,
छत्र छाया
विचित्र माया,
चित्रित काया।

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सूरज उगने से तुम्हारे जागने से पहले उठ अपने बिस्तर से खेत को जाता है एक खेतिहर किसान चाय पानी राशन एक थैली में लेकर साथ खेत के बीच चूल्हा जलाता है एक खेतिहर किसान उगाकर अनाज पाल पोश कर बड़ा करता पकाकर काट फसल तुमे खिलाता है एक खेतिहर किसान तुमे क्या पता ? कैसे पकती है फसल दाने दाने का हिसाब रखना पड़ता है गिरवी रख,गिरवी रहकर अपना परिवार चलाता है एक खेतिहर किसान। ©Jasuram

#किसान #SunSet  सूरज उगने से 
तुम्हारे जागने से पहले
उठ अपने बिस्तर से
खेत को जाता है 
एक खेतिहर किसान

चाय पानी राशन 
एक थैली में लेकर साथ 
खेत के बीच चूल्हा जलाता है 
एक खेतिहर किसान 

उगाकर अनाज 
पाल पोश कर बड़ा करता
पकाकर काट फसल
तुमे खिलाता है 
एक खेतिहर किसान

तुमे क्या पता ? कैसे पकती है फसल 
दाने दाने का हिसाब रखना पड़ता है
गिरवी रख,गिरवी रहकर
अपना परिवार चलाता है
एक खेतिहर किसान।

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शीर्षक- मजबूरियाँ   मजबूरियाँ  कमजोर सी है मगर जिम्मेदारी मार देती है  इन्सान को धमकियों के बजाय जिम्मेदारी सिखा देती है जीना  शैतान को रह ले खुले में इन्सान  मगर कुछ जिम्मेदारियाँ बनावा देती है मकान को ©Jasuram

#Lights  शीर्षक- मजबूरियाँ
 
मजबूरियाँ 
कमजोर सी है
मगर
जिम्मेदारी मार देती है 
इन्सान को
धमकियों के बजाय
जिम्मेदारी सिखा देती है
जीना 
शैतान को
रह ले खुले में इन्सान 
मगर कुछ जिम्मेदारियाँ
बनावा देती है
मकान को

©Jasuram

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