मैं न कोई मसीहा, न कोई रहनुमा हूं,
मैं अपनी ही आग हूं, मै अपना ही धुआं हूं,
मुझे परखने वाले शायद ये नहीं जानते
मै अपना गुनाह हु,मै अपनी ही सज़ा हु,।
हर बार नाकाम हुई है साजिश दुनिया की
मै अपना मुकद्दर हु, मै अपना ही खुदा हु ।
मुझे लोट कर फिर वही वापिस जाना है
मै अपनी मंजिल हु, मै अलना ही रास्ता हु।
खोया रहता हु सुरूर में शाम आे सहर,
मै अपना जाम हु, मै अपना ही नशा हु।
बिखरती है टकराकर लहरे मुसलसल,
मै अपना समंदर हूं, मै अपना ही तुफा हूं।
उठती उंगलियों का मुझे कोई खोफ नहीं
मै अपना अक्श हूं, मै अपना ही आइना हूं।
हर सिमत शोर है ,हुजूम ऐ दुनिया का
मै अलनी आवाज़ हूं, मै अपनी ही सदा हूं।
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©Rajesh Sharma
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